प्रतिलिपि स्वयं का
प्रतिरुप स्वयं का
चीत्कार उठी,चिंकार बनी,किस के मन की आवाज बनी।
वो राग हुआ,विराग हुआ, किस के जीवन अभिशाप बनी।
बैठी इक माँ सोच रही हाँ प्रतिबिंब वो मेरा
साकार हुआ मेरा सपना हाँ बनेगी वो सहारा
दो तनया तो जन्म हुई,इस बार भी संशय है बना।
संसार चले हमरा वंशज,ये आस होत हर एक पिता।
भ्रूण जाँच करवा लूँ क्या
मै मन उठक -पुठक उसके चली
कभी सोचती क्या वो सही है
आँखों से अश्रुपात बही
इस मायारुपी जीवन मे, तारे रूपी प्रपात झरे।
झूठा दम्भ दुनिया ले डूबा,देखा देखी अब करे।
मन उसका विचलित होता असमंजस की स्थिति
करे वो क्या ? करे वो ना ,दिल उसका रो बैठा था
तब बोली है अन्तर्रात्मा क्या सोच रही हो तुम भी माँ?
क्या? अपने आप का सर्वनाश कर सकती हो?
सोचो! मन मे मनन करो ??
मै रुप तुम्हारा, प्रतिरुप तुम्हारा,अस्थि केवल बाप की ।
नाम होगा बदनाम तुम्हारा, पिता का कुछ भी नही।
सोचो!माँ अनुभवी बनो देखा देखी कुछ नही
कुछ अच्छी शिक्षा दो माँ नाम तुम्हारा ही होगा माँ
मैं मैं तडप रही हूं माँ माँ कहने को केवल माँ
गमगीन हो गयी स्थित माँ की आंखे खुल गई
संताप हुआ केवल माँ को चीत्कार उठी बेहोश स्थिति
करने जा रही थी मै क्या ? स्वयं मैं अपने आप को
भेट चढा़ रही थी क्या ?आंखो से वसु की धार बही
रो-रोकर हालत है खराब ,मै नाशक बनी प्रतिबिंब का
क्या स्वयं नाश कर सकती हूं ??
क्या कहूं, किस से कहूं, संसार न जाने कैसा है।
जिस से उत्पा उस को मारा, ये कैसा शिक्षा सागर है।
फिर बोली माँ सोच- समझ के ,बेटी तु चिन्ता ना कर
मै जीवन चाहे त्याग दूँगी पर तुम्हे जन्म अवश्य दूँगी
तनया तेरे सद्ज्ञान से ये जीवन सँवर गया
विध्न मिले चाहे अपार पर पार लगा के जाऊगी…..
धन्य हुई मै महारत्न मिला,मेरा जीवन हुआ साकार
तुम्हे बारम्बार प्रणाम ,मेरी सौम्या बनो महान् ।।
{ सद्कवि }
***** प्रेम दास वसु सुरेखा******