प्रतिभा
घूरे में पड़े हुए ये हीरे हैं , जिन्हें कोई ना पहचान सका,
कीचड़ में खिले हुए अप्रतिम पुष्प हैंं , जिन्हें अब तक कोई न जान सका ,
निर्धनता का अभाव झेलते अपने अस्तित्व की रक्षा में संघर्षरत , ये होनहार भविष्य के देदीप्यमान सितारे हैं ,
समाज में धर्म ,जाति , वर्ग के भेदभाव से उपेक्षित हतोत्साहित , ये प्रतिभावान बेबस, बेचारे हैं ,
भविष्य का कोई महान वैज्ञानिक, दार्शनिक , कलाकार , या विद्वान इन्हीं में छुपा हुआ है ,
जो अब तक सामाजिक कुठाराघातों को सहते ,
साधनहीन विपन्न , वंचित दबा हुआ है ,
कब तक हम इस दमन की समाजिक मनोवृत्ति को सहन करते रहेंगे ?
और होनहार प्रतिभाओं के विरुद्ध होते इस अन्याय को देखते रहेंगे ?