#प्रतिनिधि_गीत_पंक्तियों के साथ हम दो वाणी-पुत्र
#प्रतिनिधि_गीत_पंक्तियों के साथ हम दो वाणी-पुत्र
■ शीर्षस्थ गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना के साथ आत्मीय क्षणों को समर्पित :- 😊😊
“आँख खोलीं तो तुम रुकमणी सी दिखीं,
बन्द की आँख तो राधिका सी लगीं।
जब भी सोचा तुम्हें शांत एकांत में,
मीरा बाई सी इक साधिका तुम लगीं।
कृष्ण की बाँसुरी पे भरोसा रखो,
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं।।
तुमने पत्थर का दिल हमको कह तो दिया,
पत्थरों पे लिखोगे मिटेगा नहीं।।”
#डॉ_विष्णु_सक्सेना
“मेरा दिल तो अहिल्या सा पाषाण था,
राम बन कर तेरे प्यार ने क्या छुआ।
तेरी बातों के हौले से स्पर्श से,
मन का मारीच भी स्वर्ण मृग सा हुआ।
इसकी गति पर मेरा अब नियंत्रण नहीं,
इसमें मेरी ख़ता क्या है बतलाइए।।
गर उजालों में आना मुनासिब न हो,
रात ढलते मेरे स्वप्न में आइए।।”
#प्रणय_प्रभात