प्रतिध्वनि
कहते है हर शब्द की प्रतिध्वनि सुनाई देती है
मैने तो नित प्रेम कहा, क्यों फिर घृणा सुनाई देती है
इक पौधा रोपा मैने,खारे जल से सींच गये तुम
फूल की हर पंखुडी पे, शूल की नोंक दिखाई देती है
पा लिया सर्मपण ने मेरे ,पुरस्कार रूप मे तिरस्कार
हर श्वास मेरी तुझको ढेर बधाई देती है
अब पास नही ,आभास नहीं,मेरा कोईप्रयास नहीं
प्रीत के सुन्दर घर को भी, घृणा खन्डहर बना देती है