‘धरती माँ’
माँ धरती कितना सहे,
करे न मुख से हाय।
सहके हजारों कष्टभी,
हमको देती जाय।।
हमको देती जाय,
अन धन से रहते भरे।
गर्भ में माणिक मोती,
जीव पर उपकार करे।।
कह नेगी प्रण धार,
भारत प्रजा वर वरती।
कर तरुवर-श्रृंगार,
प्रमुदित रहे माँ धरती।।