प्रतिकार
*************** प्रतिकार (लघु कथा)*****************
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रामू श्याम सेठ के यहाँ नौकर के रूप में ईमानदारी से कार्य करता था,जिस पर सेठ खुद से ज्यादा विश्वास करता था।सेठ के तीन लड़के थे,जो किसी बड़े शहर में डॉक्टरी का कोर्स कर रहे थे।रामू का एक ही लड़का था,जिसकी पढ़ाई का सारा खर्च सेठ जी उठा रहा था,जो कि हर क्षेत्र में बहुत ही होनहार था।समय बीतता गया,सेठ जी के तीनों लड़के डॉक्टर बन गए थे,जिनकी बीबियाँ भी डॉक्टर थी और उसके तीनों बेटे अपने अपने परिवारों के साथ माता पिता को अकेले छोड़कर अलग अलग शहरों में बस गए थे।सेठ जी अपनी पत्नी सुशील के साथ अपनी पुश्तेनी हवेली में ही रह रहा था,जिसकी रामू का परिवार बड़ी शिद्दत से हर प्रकार से देखभाल कर रहा था।सेठ जी का कोई भी बेटा उनकी खबर तक पूछने नही आता था,जिसका बुजर्ग दम्पति को बहुत ही ज्यादा दुख था,जिस कारण वे औलाद वाले होकर भी बे औलाद थे।इस बीच रामू का लड़का विनय भी पढ़कर जिले का कलेक्टर बन कर उसी गांव के जिले में तैनात हो गया था,जिसकी रामू व गांववालों को बहुत ज्यादा खुशी थी। जब विनय को अपने पिता जी के माध्यम से सेठ व उसके बेटों के बारे सारी कहानी का पता चला तो वो मानसिक रूप से काफी दुखी हुआ।सेठ सेठानी दोनो बीमार रहने लगे थे।विनय उसी वक्त गांव आया और सेठ की जमीन को ठेके पर दिलवाकर अपने माता पिता सहित सेठ सेठानी अपने शहर के सरकारी आलीशान बंगले में ले गया,जिसकी उसने उसकी पत्नी ने जी भर कर सेवा करके सेठ द्वारा उसके व उसके परिवार के प्रति किये गए कार्य का प्रतिकार चुका दिया था और सेठ ने भी मरते समय अपनी सारी जमीन -जायजाद,चल-अचल सम्पति विनय के नाम कर प्रतिकार शब्द की परिभाषा ओर सम्मानजनक बना दिया था।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)