प्रण
प्रण
रग रग में विष भरा दुराव
पग पग पे छलना स्वभाव
विश्वास छलभरी बातों का
अहसास हमें उन घातों का
खण्डित सदा संकल्प तेरे
बचे पास कौन विकल्प मेरे
समय रहते जो तुम चेत जाते
आतंक का यूँ न खेत लहराते
मन में ठान लिया जो अब प्रण
कुचलेंगे सकल दुष्ट अहिफण
यह तो महज एक प्रतिकार है
हुआ कहाँ अभी असल वार है
-©नवल किशोर सिंह