प्रणय निवेदन है तुमसे !
प्रणय निवेदन है तुमसे !
प्रणय निवेदन है तुमसे
हे प्राण रसिक मेरे आधार !
मधुर हृदयों में आस उमड़ती ;
कर लेना प्रियवर स्वीकार !
मैं समरसता की प्रतिबिंब
स्नेहामयी करुणा अपार ,
आलिंगन को निरत प्रतीक्षारत
मेरे नैनों के अश्रुधार !
युग की सरिता की मादकता में ,
बहती प्रेम सुधा रसधार !
हे मधुर उच्चछ्वासों के प्रतिमान ,
तुझसे पूरा मेरा श्रृंगार !
कणिकाएं खिलती प्रफुल्लित हृदयों की,
मेरे रोम-रोम झंकृत हैं तार ;
आ रसिक ! जीवन को धन्य बना दे !
कर दे क्षणिक मेरा उद्धार !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’