प्रजा आर्यावर्त की
‘प्रजा आर्यावर्त की’
मैं हूँ प्रजा आर्यावर्त की,
पूजने उनको ही हूँ आई।
सीमा पर मातृभूमि की रक्षा को,
हैं डटे रहते जो वीर सदा ही।
मैं करूँ अर्चना-वंदना,
परमपिता जगदीश से,
मागूँ चिरायु दे उन्हें,
छू चरण अपने शीष से।
उनकी ही पहरेदारी में मैंने,
हर खुशियाँ खूब मनाई,
मैं हूँ प्रजा आर्यवर्त की,
पूजने उनको ही हूँ आई।
भुज-बल अक्षुण हो उनका,
वक्ष गर्व से तना रहे,
उनके ही अवलंबन में,
उत्साह सभी में घना रहे।
करती रहूँ गुणगान अथक मैं,
वीरता का उन वीरों की,
हैं वो ही जीवन रक्षक भी,
और हैं वो ही मेरे भाई।
मैं हूँ प्रजा आर्यावर्त की,
पूजने उनको ही हूँ आई।
रक्त की इक बूँद भी,
व्यर्थ ना हो उनकी कभी,
हर एक पल मेरे जीवन का,
उनको ही समर्पित है सभी।
मान बढ़ाने को सब वीरों का,
रक्षा सूत्र अभिमंत्रित लेआई।
मैं हूँ प्रजा आर्यावर्त की,
पूजने उनको ही हूँ आई।
इक सूत्र समर्पित उनको भी,
जो बन गए अमर बलिदानी,
युगों-युगों तक याद रखूँगी ,
उन वीरों की अमर कहानी।
उपकार कभी ना भूलूँगी,
अंत समय तक याद करूँगी,
रहूँगी जब तक इस भूमि पर,
उनकी भी सजी रहे कलाई।
मैं हूँ प्रजा आर्यावर्त की,
पूजने उनको ही हूँ आई।