प्रकृति
प्रकृति तू ऐसी लगती है कि मानो प्रकृति हमारे लिए ही बनी हो इस प्रकृति की इतनी अजीबो गरीब करामाते हैं
हम चाह कर भी न जान पाते हैं प्रकृत कितनी अजीब है समझना कि मुश्किल नहीं नामुमकिन है हम जितना इसमें जाते हैं उतना खो जाते हैं ईश्वर अब तू ही बता दे तूने कौन सी कारीगरी से इसे बनाया है कि हम चाह कर भी इसके बारे में ना जान पाते हैं
कभी लगता है कि तूने कौन सी पढ़ाई की होगी हर आदमी के चेहरे एक दूसरे से अलग तुमने कैसे बनाई होगी थोड़ा सा धैर्य रख मन चाहता है तेरी गोद में खेले तुझसे धीरे से पूछ ले
कौन है तू ?
जो मुझ को मुझ से ही अलग करता है और मेरे अंदर वह खोजकर्ता का गुड़ डाल देता है कि मैं तुम्हें खोजता ही रहता हूं मन चाहता है कि मैं तेरे साथ चलूं तेरे साथ उड़ चलु और महकु उन फूलों की कलियों सी जैसे तू फूलों को महाकाता है।