प्रकृति
आज मेरा मन पुनः, शांत हुआ //
ज़ब तन-मन का, प्रकृति से मेल हुआ //
कभी कोयल की कु-कु करती, मधुर ध्वनि सुनाई देती थी //
और मंद गति से बहती वायु, हिर्दय को ठंडक देती थी //
हमने जो अत्याचार किया प्रकृति वो सब चुप-चाप सह रही है //
नदी की बहती धारा मानो, हमसे ये सब कह रही है //
प्रकृति के क्रोध को मैंने, मेघो के गरजने मे देखा है //
सूर्य को दिन-प्रतिदिन विक्राल रूप धरते,
और धरती को भूकंप रूप मे कम्पित होते देखा है //
~: कविराज श्रेयस सारीवान