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1 Apr 2018 · 1 min read

प्रकृति

प्रकृति पर कविता

ऊंचे वृक्ष ,घने जंगल
चहु और छाए मंगल ।

दर्पण जैसा आकाश
नील जैसा पानी
बहता जैसा आचंल
यह समुद्र की रानी ।

तरु पर फुदकने चिड़ियों की मधुर चहचहाट ,
खुशबु लिए हवा की सरसराहट ।

समुन्द्र की लहरों का शोर
आया नृत्य करता सावन का झूमता मोर ।

सुंदर रंग बिरंगे फूल
उड़ती बयार से धूल

मौसम की केसी हलचल
नदियों का केसा कलकल ।

पर्वत की ऊंची चोटियां

बजती झींगुर की सिटीया ।

देखो शाम के समय सूरज
सरिता रूपी दर्पण में निहारता
जैसा सुबह आने का कह जाता ।

प्रकृति की इंद्रधनुषी
ओत प्रोत छटाई
जैसे बिछी धरा पर चटाई।

जहां पेड़ की छाव तले, प्याज रोटी खाने के जो मजे आते ,,
वो मजे खाना खाने के ,इन होटलों में कहाँ आते ।

जहां शीतल जल ,इन नदियों की दिल की प्यास बुझाते ,
वो मजा इन मधुशाला की बोतलों में कहा आते ।

ईश्वर की प्रकृति की सौगात
यह है यह धरा की आहट ।

प्रकृति ने की अच्छी सी रचना,
पर इसका उपभोग कर मानव,,,
इसके नियमो के विरुद्ध
क्यों बन रहा है दानव ।

सब है प्रकृति के वरदान
इसे नष्ट करने के लिए
त त्तपर क्यों खड़ा है इंसान ।

प्रवीण की यही है पुकार
कटे पेड़ की रक्षा भी कर लो
सरकार ।

✍✍प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित कापीराइट
टी एल एम् ग्रुप संचालक
दिनाक 1 अप्रैल 2018
मोबाइल नंबर 9165996865

Language: Hindi
1 Like · 506 Views
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