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12 May 2024 · 1 min read

प्रकृति संरक्षण (मनहरण घनाक्षरी)


हैं जीव-जंतु गीत में, आराम नर्म शीत में,
मनु धरा के बीच में, प्यार होना चाहिए।

काट-छाँट छोड़ कर, जिंदगी से होड़ कर,
दम्भ सारे तोड़ कर , क्वार होना चाहिए ।

न पेड़ कोई काटिए, न ही धरा को बाँटिए,
चाहें जो कुछ छांटिए , सार होना चाहिए ।

रख मोह संसार से, न हानि आविष्कार से,
नाव को मझधार से , पार होना चाहिए ।

२ –
राष्ट्र-हित जागरण , करें शुद्ध आवरण,
मित्र भाव आचरण , ज्ञान होना चाहिए ।

निज धरा से पाँव का, हर जीव सद्भाव का,
निज प्रकृति भाव का, भान होना चाहिए ।

शुद्ध हवा जो चाहिए , वृक्ष सब लगाइए,
भूमि जल बचाइए , गान होना चाहिए ।

रहे सदा शांत चित , हो प्रकृति साथ हित,
पाता-दाता भाव नित, मान होना चाहिए ।

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