प्रकृति संरक्षण (मनहरण घनाक्षरी)
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हैं जीव-जंतु गीत में, आराम नर्म शीत में,
मनु धरा के बीच में, प्यार होना चाहिए।
काट-छाँट छोड़ कर, जिंदगी से होड़ कर,
दम्भ सारे तोड़ कर , क्वार होना चाहिए ।
न पेड़ कोई काटिए, न ही धरा को बाँटिए,
चाहें जो कुछ छांटिए , सार होना चाहिए ।
रख मोह संसार से, न हानि आविष्कार से,
नाव को मझधार से , पार होना चाहिए ।
२ –
राष्ट्र-हित जागरण , करें शुद्ध आवरण,
मित्र भाव आचरण , ज्ञान होना चाहिए ।
निज धरा से पाँव का, हर जीव सद्भाव का,
निज प्रकृति भाव का, भान होना चाहिए ।
शुद्ध हवा जो चाहिए , वृक्ष सब लगाइए,
भूमि जल बचाइए , गान होना चाहिए ।
रहे सदा शांत चित , हो प्रकृति साथ हित,
पाता-दाता भाव नित, मान होना चाहिए ।