प्रकृति वंदन
प्रकृति वंदन
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धन्य धरा ये पावन,
हर घर प्रकृति वंदन,
मधुर कलरव खग करते
झूम उठता तरूवर का मन।
रंग बिखेरें तितली सा,
मन चंचल करता स्पंदन,
जुगनू सी रातें जगमग,
झिंगुर करते अभिनंदन,
बूदें धरती पर टप टप,
कर रहीं धरा अभिवंदन,
धरा ने ली फिर अंगड़ाई,
फड़क उठे है ऋतु अधर ,
बाँह पसारे अब बादल ,
कर रहे धरा आलिंगन,
वर्षा की पहली बूँदों ने,
तपिश से दे दी कुछ राहत,
धरती की प्यास बुझाने को,
उमड़ घुमड़ बरसो रे घन,
ठंडी – ठंडी फुहारों से,
आया है मौसम मनभावन।