प्रकृति प्रेम
मेरा आत्मा प्रकृति में समाया –
द्रुमों के मृदु – छाया ,
कुकू – कुकू कोयल बुलाया ,
तो कहीं विहंगिनी ने –
जीवन की अनमोल गीत सुनाया ।
छायावाद ने माया जाल बिछाया –
प्रकृति प्रेम ने –
माया जाल में फंस लिया ,
करूँ प्रकृति की भक्ति –
दे वरदान , दे प्रभु शक्ति ।
प्रकृति मेरी माँ –
द्रुमों की छाया ;
पिता श्री का छत्रछाया ,
आत्मा से आत्मीयता जोड़ा हूँ ,
इसे कैसे तोड़ूँ ,
सुन के थमता ,
निच्छ्वास – उच्छवास ;
सुन के कोयल की मीठी बोल ,
कहीं सुना विहंगिनी की –
तो गुणगुण करते मधुकर की वीणा अनमोल ,
कौन गीतकार ?
कौन संगीतकार ?
कौन है इस प्रकृति की रचानाकार ,
प्रकृति लुभाएं मन – प्राण ,
प्रकृति को मेरा कोटि – कोटि प्रणाम ।
मरणोपरांत मेरा आत्मा ,
प्रकृति की गोद में –
विलय हो जाए –
यहीं अभिलाषा मेरा ,
मर के अगर जन्म लूँ दोबारा ,
विहंगिनी की कोमल उर में –
लिखा गीत हो मेरा ।
प्रकृति की गोद में बहती –
नदी – नद , नाल के जल अमृत ,
इसे पी के करूँ –
प्यासा आत्मा को तृप्त ।
रतन किर्तनिया
पखांजूर
जिला :- कांकेर
छत्तीसगढ़