– प्रकृति ने दिया उपहार करो मत उसका उपहास –
– प्रकृति ने दिया उपहार करो मत उसका उपहास –
वृक्ष दिए प्रकृति ने,
देते जो ठंडी छांव,
फल दिए प्रकृति ने,
बनते जो मानव का आहार,
जंगल दिया प्रकृति ने,
बनता जिससे मानव के लिए ईंधन का जुगाड,
प्रकृति ने दिया प्राकृतिक श्रृंखला का आधार,
एक दूसरे पर निर्भर है सब,
इसका दिया मानव को ज्ञान,
मनुष्य आज इसका दुरुपयोग है कर रहा,
जंगल को काटकर अपना घर है कर रहा,
हो गया है अब शुद्ध हवा का अभाव,
नही मिल रहा आज कोई भी शुद्ध आहार,
भरत आपसे कहता हाथ जोड़कर,
गहलोत प्रकृति ने दिया उपहार मत करो इसका उपहास,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
संपर्क -7742016184