प्रकृति ने छेड़ा राग
प्रकृति ने छेड़ा राग…….
बजता है संगीत सदा,धरा गगन के बीच।
खिलते कमल कमाल के, जहां भरा है कीच।।
भोर का वंदन भाव से,करते पंखी रोज।
सांझ आरती गा रहे,मन में भरते ओज।
उदित सूर्य छिपते तारे,कहते कोई राज।
कल बिसरा आगे चलो,खड़ा सामने आज।।
बादलों केे बाजे हैं, बारिश में झंकार ।
बिजली के ठुमके लगें,झूम रहा संसार।।
कहीं कूक कोयल करें, कहीं नाचते मोर।
झिंगुरों के गीत यहां,चंदा तके चकोर।।
आंचल लहराए हवा,सरसर गाए फाग।
ताली पेड़ बजा रहे,शोर मचाते काग।।
(क्रमशः)………….
विमला महरिया “मौज”