प्रकृति ने गुनगुनाया
प्रकृति ने गुनगुनाया (गीतिका)
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राग वासन्ती प्रकृति ने गुनगुनाया।
स्नेह अंकुर हर हृदय में जगमगाया।
भावनाओं पर नहीं है वश किसी का।
स्वप्न को सबने यहां साकार पाया।
झड़ चुके पत्ते पुराने पेड़ से जब।
देखिए नव अंकुरण का वक्त आया।
खूब महकी खेत में जब पीत सरसों।
दृश्य है स्वर्णिम सभी मन खूब भाया।
खो गए सब दिव्य सी अनुभूतियों में।
गान कोयल ने मधुर जब है गुँजाया।
शारदे मां से यही विनती करें हम।
हो कृपा की दृष्टि पावन सघन छाया।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)