‘ प्रकृति चित्रण
विष्णुपद छंद
प्रकृति चित्रण
भोर हुए जो लाली नभ में,दिनकर है भरता।
देख उसे मन मेरा चहका,दिनभर है रहता।
संध्या को भी वो ही लाली,नभ सुंदर करती।
देख वही सुंदरता नारी,नख शिख मद भरती।
चाँद-चाँदनी प्रेमांकुर को,रोपित जब करते।
टिम -टिम करते तारे नभ में,प्रेम रंग भरते।
खुले आसमाँ के नीचे तब,प्रीत कमल खिलता।
साजन सजनी के अधरों से,अधर मिला मिलता।
शीतल शांत सरोवर जल में,श्वेत चाँद चमके।
मंद समीर सुगंध बिखेरे,नयन काम दमके।
झीना आँचल भेद चाँदनी,सुंदरता निरखे।
सजनी का मन कितना चंचल,साजन ये परखे।
नीम निमोरी पग से चटकें,गुलमोहर महके।
रिमझिम बरस रही है बरखा,दादुर भी बहकें।
सजनी की भीगी जुल्फों से,मोती जब टपकें।
हर मोती मुखड़े पर निखरे,पलक नहीँ झपके।
रह रह कर चमके जो बिजली,जियरा है धड़के।
साजन की बाहों में सजनी,चुनरी भी सरके।
चमक चमक चमकें हैं जुगनू,कोयल कूक रही।
साजन सजनी के मन में उठ,चंचल हूक रही।
काले काले बदरा नभ में,रह रह गरज रहे।
ऊँचे पर्वत की चोटी पर,जम कर बरस रहे।
पत्ता पत्ता खड़क रहा है,बरखा यूँ बरसे।
चाँद चाँदनी से अपनी अब,मिलने को तरसे।
शांत सरोवर का जल भी अब,ऐसे उफन रहा।
बरखा की बूँदों को जैसे,कर वो नमन रहा।
प्रीत पगी अँखियों से साजन,को चूमे सजनी।
देखा उनका प्यार जवाँ तो,झूम उठी रजनी।
‘ललित’
समाप्त