प्रकृति चित्रण
अरुणकाल में रक्तवर्ण रवि राजित हुए विशाल।
धरा स्वर्ण सम दमक रही है मुंजित हुए रसाल।।1।।
नव तारुण्य चितचोर मोहिनी तरुवर करे मिलाप
मलय सुवासित मारुत प्रवहति नष्ट करे सन्ताप।।2।।
दृग दोउ द्वंद प्रचंड करे इत उत देखत रूप अनूप।
अन्तर्मन की दृष्टि दिव्य है सब हैं श्रेष्ठ स्वरूप।।3।।
झर-झर निर्झर किलकत निर्झरिणी निकसत।
कल-कल हर-हर प्रवहति धारा घरर-घरर-घहरत।।4।।
कोकिल काग खगेश वक्रतुण्ड विचरत विविध विहंग।
कलरव मोहक अति सुखदायक लक्षित सृष्टि उमंग।।5।।
मर्कट ऋक्ष माहेयी महिषी, हय प्रसू गर्दभ गज सारंग।
गह्वर कानन गिरिवर कन्दर निवसति परम प्रसन्न।।6।।