प्रकृति की चेतावनी
कुहू कुहू कोयल बागों में नहीं गाएँगी ,
वो अब कानों में ईयरफ़ोन से सुनी जाएँगी ।
मौसम बीत गया बरसात का बिन सुने बादल की गर्जन ,
बेचारे मोर नाच रहे डीजे पर सुन बादल गर्जन की धुन।
नदियों का पानी भी जल्द ख़त्म हो जाएगा ,
हमारी करतूतों कारण डूबने के लिए चुल्लू भर पानी उनमें रह जाएगा ।
दूर दूर तक न नज़र आएगी हरियाली,
तालाब बन जाएँगे पानी की इक प्याली ।
बिन बरसात न मिलेंगे रसीले आम ,
सोने से हो जाएँगे जल के दाम ।
काट पेड़ कर रहा मानव अपनी उम्र छोटी,
हो जाएगी बंजर भूमि न मिलेगी खाने को रोटी।
ऊँची ऊँची इमारतें छू रही हैं आसमान का दामन,
पर ये ला नहीं सकती सावन ।
काट पेड़ मानव कष्ट बहुत भुगतेगा,
जल्द बूँद बूँद को तरसेगा ।
इक दिन ऐसा आएगा ,
जब बरसने के लिए सिर्फ़ आँखों में जल रह जाएगा।
न मिलेंगे नीम बरगद पीपल बस रह जाएँगे ढूँढ ,
होंगे चारों ओर रेगिस्तान हरियाली जाएगी रूठ ।
उड़ेगी हर ओर धूल ,
तब मानेगा मानव शायद अपनी भूल ।
चुभेगी उसे पानी की कमी बन शूल ,
विश्व रूपी चमन से ख़त्म हो जाएँगे फूल ।
बुझ नहीं सकती मानव के लालच की आग ,
बिन जल मछली बतख़ हंस कर देंगे जीवन त्याग।
काट रहा अ इंसान तू उस डाल को ,
झुलाया जिसने ख़ुद पर बिठा बचपन में तुझको।
बिन झूलों के बीत जाएगी तीज ,
किसानों के हाथों में रह जाएँगे बिन बोए बीज ।
वक़्त रहते आओ मिलकर पेड़ लगाएँ ,
धरती माँ को चूनर फिर हरी उढ़ाएँ ।
जंगलों की आग सा न जल जाए हमारा कल ,
बचे जो हमसे तो बचा सकते हैं हमें पेड़ और जल।
दे रही हमें प्रकृति कठोर चेतावनी ,
सुंदर धरा को ना बनाओ डरावनी ।
इंदु नांदल विश्व रिकॉर्ड होल्डर
इंडोनेशिया
स्वरचित