प्रकृति की करुण पुकार
मुझे बचा ले बेटा तेरी, द्वार खड़ी मां कह रही है।
सीना चीर के दूध पिलाया, आज खून की धारा बह रही है।
काट रहे है बाह ये मेरी, कुछ सिक्कों के लालच में।
सूख रही है नस हाथों की ,इनके कठिन प्रहारों से।
जीव जंतु,और और पछी मारे, इन्ही धूर्त हत्यारों नें।
गोद उजाड़ दिया है मेरी, मेरे ही रखवालो नें।
वन को काट कर आग लगा दी, शहर बनाने वालों नें।
काटे है पर्वत भी इनने , और मुझे ये काट रहे।
सहम गई हूं मोत देखकर, अपने आंख के तारो की
धरती माता सहम के कह रही, मुझे ना काटो पुत्र मेरे…..
“”नही रहा गर आँचल मेरा,
कहाँ छाँव तू पायेगा।
तेरी चोट में गोद उठाकर,
मरहम कौन लगाएगा।
भूख लगी गर कभी तुझे तो,
भोजन कौन कराएगा।
कही तुझे कुछ कष्ट हुआ तो,
रोकर किसे बताएगा।
अपनी माँ की रक्षा करने को,
तू नही गर आएगा।
तो हत्यारो का झुंड मुझे यूँ,
नोच नोच कहा जायेगा।,”””
मझे बचा ले बेटा तेरी द्वार खड़ी माँ कह रही है।
ये प्रकृति हमारी कह रही है।
ये प्रकृति हमारी कह रही है।
राहुल प्रकाश पाठक