प्रकृति का विनाश
जो आजाद है उसे आजाद ही रहने दो।
जो जिसका घर है उसके घर में ही रहने दो।
माना कि तुम बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ हो।
पर तुम किसी का घर ना तोड़ो।
कितने बनाओगे बिल्डिंग जंगलों को काट के
जब कोई बच ही नहीं पाएंगे ।
तो क्या करोगे रहके अकेले अपने आप के
अब सब विलुप्त होते जा रहा है।
एक मानव ही है जिसका वृद्धि हो रहा है।
ऐसा ना हो की सिर्फ मानव ही रह जाए।
बाकी शेष कुछ न बच पाए।
सुशील कुमार चौहान
फारबिसगंज अररिया बिहार