प्रकृति का मजाक
छोटी सी कविता समर्पित है
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देखो यहां कितने इतराने लगे हैं लोग
प्राकृति का मजाक उडाने लगे हैं लोग
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जब से खबर आई के कोरोना आ रहा है
तब से ही हर कोई खिल्ली ऊडा रहा है
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प्राकृति के प्रकोप का ज्ञान होना चाहिए
उत्तराखंड का कहर ध्यान होना चाहिए
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उस परम पिता को शायद जानते नहीं हो
उसकी क्या पावर है तुम पहचाने नहीं हो
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ए इंसान तू उसकी कारीगरी पे हंसता है
जिसका नूर दुनिया पे हर वक्त बरसता है
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वो सागर को भी रेगिस्तान बना सकता है
रेगिस्तान में भी पानी की बाड ला सकता है
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वो पतझड़ में भी फूल खिला सकता है
खिले खिलाए को भी मिट्टी में मिला सकता है
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क़ुदरती आपदा में कुछ अपना खोकर दिखाना
फिर आजाद मंडौरी तू खुश होकर दिखाना