प्रकृति और मानव
प्रकृति का भयावह रूप🌹🌹🌱🌱🎋🎋
घनाक्षरी छंद
“प्रकृति मानव संवाद”
अब सुन , हे मानव!
मत बनना दानव!
वरना पछतायेगा!
श्वास भी गंवायेगा!
दोहन करना छोड़!
मुझसे नाता जोड़!
श्रृंगार हो हरा भरा !
पुत्र मेरे , मैं धरा!
प्रकृति सुरुप तभी!
सजग मनुज सभी!
जंगल बाग आबाद!
वरन् हुआ बर्बाद!
लेता हूं आज शपथ!
हरे भरे होंगे पथ!
प्रकृति ईश वर है!
तू है ,तो ये नर है!
अद्भुत मेल हमारा !
चले जगत ये सारा!
प्रकृति प्रकोप नहीं!
सुख संतोष सही!
डॉ.कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ