” प्यासे पानी चाहें ” !!
जम के बरसो कारे बदरा ,
तुम पर टिकी निगाहें !!
प्यासे प्यासे अधर हमारे ,
धरती भी है प्यासी !
सूखे सूखे खेत पड़े हैं ,
हरियाली न ज़रा सी !
आँखों के आँसू भी सूखे ,
प्यासे पानी चाहें !!
जलचर , नभचर प्यासे प्यासे ,
तोड़े हैं दम अपना !
बूंद बूंद पानी को तरसें ,
पानी की है रटना !
कंठ सभी के सूख रहे हैं ,
सूनी सूनी राहें !!
नदिया , पोखर तरसें पानी ,
पनघट , घट सब रीते !
कूप सभी खाली खाली हैं ,
मर मर कर सब जीते !
नभ पर छाकर , करो अंधेरा ,
बरसो , सभी सराहें !!
खालीपन सब दूर हो चले ,
भर भर कर तुम बरसो !
हँसे प्रकृति , फैला आँचल ,
मुस्कानें तुम परसो !
स्वागत को आतुर हैं सारे ,
फैला दी हैं बाँहें !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )