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22 May 2017 · 1 min read

“प्यासे अधर”

“प्यासे अधर”
सदियों से प्यासे अधरों पर
मधु मुस्कान कहाँ से लाऊँ,
मूक व्यथा की पौध लगा कर
सुरभित पुष्प कहाँ से पाऊँ?

पीड़ा से मर्माहत मन को
कोकिल गान सुनाऊँ कैसे,
अंधकारमय जीवन मेरा
दीप की लौ जलाऊँ कैसे?

जीवन की इस धूप छाँव में
नयन नीर क्यों बरस रहा है,
अगन लगी जब दरिया में तो
नेह मेघ क्यों तरस रहा है?

व्यथित प्रेम की विकल वेदना
ग़ज़ल गीत में गाऊँ कैसे,
वीणा के टूटे तारों से
मृदु झंकार सुनाऊँ कैसे?

पतझड़ में शोकाकुल आहत
प्यासा सावन अब तरस गया।
प्रीत लगा जब निष्ठुर बादल
परदेसी भू पर बरस गया।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका -“साहित्य धरोहर”
महमूरगंज, वाराणसी।(मो.-9839664017)

Language: Hindi
1 Like · 507 Views
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