प्यासी नज़र
ढूढ़ती है नज़र हर जगह पे तुम्हें,
न जाने कहाँ ,तुम किधर खो गए।
ढूढ़ती है नज़र हर जगह पे तुम्हें……
बेमतलब कोई अब हँसाता नहीं,
मेरे रोने से पहले ,कोई अब रोटा नहीं…
अपने पापा की मन्नू अब अकेली…
किस से बोलू, अब मैं जौ कहाँ..
ढूढ़ती है नज़र हर जगह पे तुम्हें…
हर रिश्ते में मतलब,यहाँ आने लगा..अँधेरा यहाँ अब छाने लगा..
ढूढ़ती है नज़र हर जगह पे तुम्हें…
“कोई नहीं है ….कोई नहीं है…..
फिर भी लेकिन, न जाने किसका इंतिज़ार……….
मीनू शर्मा