प्यासी आँखों की
प्यासी आँखों की बात अधूरी है
कैसे कहूँ कि मुलाक़ात अधूरी है
माना के हर ख़्वाब की ताबीर नहीं
ख़्वाबों के बिना हर रात अधूरी है
कुछ तो है के लगता है तेरे बिन
जीवन की हर सौगात अधूरी है
कह दो ये रक़ीब से, रखवाला हूँ मैं
तेरे छल-बल-ओ-घात अधूरी है
हर खेल में जीत ज़रूरी थी साहब
इश्क़ में क्यों शय-ओ-मात अधूरी है