प्यासा मन
चंचल तन और निर्मल मन है,
पावन है एहसास तेरा।
समन्दर में खड़ा हूं फिर भी,
बढ़ता है प्यास मेरा।
चंचल तन . . . . . .
मन भौंरा है एक आवारा,
समझता है अपना बगिया सारा।
कभी इस कली कभी उस कली,
रसपान को मंडराता है।
कान्हा बन गोपीयों को,
नाच नचाता है।
बहुत समझाया ये नादान है,
फिर भी हसीनों की शान है।
हर हंसी से यही कहता है,
ये दिल तुझपे हि मरता है।
तु म्यान और मन मेरा तलवार है,
हर पल है इंतजार तेरा।
समन्दर में खड़ा हूं . . . . . .
कितनों से फरेब करता है,
क्यूं औरों पे मरता है।
मै नहीं मरता वो मरती है,
दिवानी है दुनिया से नहीं डरती है।
छोड़ दुनिया को मेरे साथ चलती है,
अब मुझे भी वो अच्छी लगती है।
सोचता हूं फरेब न करूं,
बस तुझपे हि मरूं।
महक चंदन और अपनापन है,
मेरे सांसों में है हर सांस तेरा ।
समन्दर में खड़ा हूं . . . . . .