प्यासा पंछी… !!
प्यासा पंछी, प्यासा जीवन, प्यासा है उसका रहन -सहन,
प्यासा उसका उत्सुक -सा मन, प्यासा उसका कल्पित चित्रण !
डाल -डाल, डगर -डगर ढूंढे फिरता है चहल -पहल,
मिली उसे ना कोई लहर, जिससे जीवन मे हो नयी पहल..!
ना मन की तृप्ति, ना तन को छाया,
कैसा निर्मम जीवन पाया !
प्यास के मारे नीढाल हुआ जो, चलते -फिरते कराह रहा जो..!
क्या ढूंढे फिर रहा है, बनके पागल आवारा,
उसके जीवन का दुश्मन बना जग सारा !
तार बिछे पग -पग मे, मोबाइल मिले घर -घर मे,
क्या करें मानव बेचारा, इनके बिना न होये गुजारा !
जल बिन जीवन कहा है, ये समझो मेरे यारों,
तुम थोड़ी समझ दिखाओ, पंछी का बनो सहारा !
कोशिश करेंगे तो हर मुश्किल का हल निकलेगा.!
ना जान लोगे किसी की कर लो ये प्रण,
जीवन दुस्वार ना करना जो जीते है… कुछ पल.. कुछ सन…!
जब तक बदलाव ना होगा, कैसे आयेगी रवानी,
तुम कदम जरा बढ़ाओ, अगर बदलने की जो तुमने ठानी.. !
ज्यादा ना बोझ है प्यारे…थोड़ी करो नादानी,
बस छत, पखवाड़े पर रख आओ यारा,,
थोड़ा सा अनाज, थोड़ा सा पानी…. !!