प्यार है कोई खेल नहीं
जब कोई दिल की सुन जाए,
मन उसे अपना चुन जाए।
मन की भाषा आंखें बोले,
जुबाँ का ताला बांछें खोलें।
तब होता है प्रीत कहीं,
प्यार है कोई खेल नहीं।।
प्यार है अर्पण सर्व समर्पण,
स्वच्छ दिलों का निर्मल दर्पण
कड़की धूप तपिश में तपता,
और बहती जलधार में नपता
दिखे उसे बस प्रीत सही,
प्यार है कोई खेल नहीं।।
सर्व न्योछावर करता प्यार,
सच्ची राह दिखाता यार।
सच्चा प्यार मिले है कम ही,
ज्यादा मिलता इसमें गम ही।
क्यूँ न निभाते सही सही,
प्यार है कोई खेल नहीं।
जो है छलिया सौदागर,
धोखे से भर देता गागर।
जज्बातों से नहीं जो सच्चा,
प्रीत के रिश्ते समझे कच्चा।
करे स्नेह बदनाम वही,
प्यार है कोई खेल नहीं।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर, उ.प्र
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