प्यार में मिला ऐसा सिला
***** प्यार में मिला ऐसा सिला (गज़ल) *****
******वह्र:- 2212221222122212******
*****रदीफ़ :- कैसे कहूँ, क़ाफ़िया- (आ) *****
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मन में रहा कुछ भी नहीं अब हौसला कैसे कहूँ,
बढ़ ही रहा है रोज मन में फ़ासला कैसे कहूँ।
यूं ख़ौफ़ में ही जी रहा हूँ मैं खफ़ा हो कर यहाँ,
भय का नहीं है थम रहा ये सिलसिला कैसे कहूँ।
देखी बहुत दुनिया यहाँ हमने तुम्हें है क्या पता,
तुम सा नहीं कोई जहां में सानी मिला कैसे कहूँ।
ये कौन कहता है कि है सबको सदा मिलती वफ़ा,
गर बे वफाई है मिली तो दिल जला कैसे कहूँ।
हैं आशिकी में खूब खाई चोट ही चोटें सदा,
अब आशिकों का चल पड़ा है काफिला कैसे कहूँ।
हम भीड़ में भी दें दिखाई हो अकेले ही सदा,
हमको किसी से भी नहीं कुछ है गिला कैसे कहूँ।
तोड़ दूं झट प्रीत मनसीरत बड़ी दर्द सी है भरी,
दिलदार से ही प्यार में मिला ऐसा सिला कैसे कहूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)