प्यार में जबसे मिली रुस्वाइयाँ
प्यार में जबसे मिली रुस्वाइयाँ
सूख ही दिल की गयी हैं क्यारियाँ
बादलों की आँख से आँसू झरे
देखकर नभ में तड़पती बिजलियाँ
प्यार तो करते बहुत हैं वो हमें
पर समझते ही नहीं मजबूरियाँ
वो बसे हर साँस में हैं इस तरह
भान होती ही न उनसे दूरियाँ
जब हवायें भी बदलने रुख लगीं
कुछ सुलग बैठी दबी चिंगारियाँ
फुसफुसाती रोज आकर कान में
आज भी उनकी लटकती बालियाँ
जो हिफाजत ‘अर्चना’ अपनी करें
वो हुआ करती नहीं पाबंदियाँ
डॉ अर्चना गुप्ता