प्यार बनारस
मैं बनूँ शिवाला काशी का, तुम गंगा की हो धार प्रिये।
मैं चेतगंज का मेला हूँ, तुम कजरी का त्योहार प्रिये।
मैं मालवीय की कर्मभूमि, तुम शास्त्री का संसार प्रिये।
मैं विस्मिल्लाह की शहनाई, तुम गिरिजा का श्रृंगार प्रिये।
मैं तंग गली बनारस की, तुम दालमंडी बाज़ार प्रिये।
मैं दुर्गाकुण्ड का दुर्गा मंदिर, तुम सोलह श्रृंगार प्रिये।
मैं दशाश्वमेध की आरती, तुम हो नौका – विहार प्रिये।
मैं संकटमोचन की चौखट, तुम विश्वनाथ दरबार प्रिये।
मैं बम – बम की मधुर ध्वनि, तुम महादेव की जयकार प्रिये।
मैं बनूँ शिवाला…।