प्यार डर नहीं शक्ति है
मत भूलो याद करो वो दिन
मेरे सीने पर सर रखकर तुमने
कितनी कसमे खाई थी साथ रहने की
उस पहले चुम्बन के साथ……।
तुम बताते थे कई बार…..
सपने में बुद-बुदा देते थे मेरा नाम
जब थपकी देती थी माँ, तो
डर जाने का बहाना बनाते थे ।
वो रब से माँगी थी दुआएं तुमने
मिला देना मेरे उस रब से मुझे
मन मन्दिर में जिसकी मूर्त है
घंटों बतियाते थे मुझसे, दूर रहकर भी ।
वो मीठे बहाने, वो झूठी रुसवाईयाँ
किसी एक को पहल करनी पङती थी मनाने की
इमतिहान की शर्तें लगाकर प्यार बटोरना सीखा
वो पहचान थी हमारी डर तो हमें था ही नहीं ।
दूर रहकर भी अकुशलता का पता लगा लेते थे
वो क्या था, प्यार की ताकत ही तो थी
एक-दूसरे को याद करते ही कूपर का यंत्र बज उठता था
हमारे प्यार का ग्वाह यही तो है ।
मैंने जीना तो तुमसे ही सीखा था
तुम भी कहते थे आखिरी सांस तक साथ रहने का
कभी-कभार नोट बुक भी तो ग्वाह बन जाती थी
माँ भी तो अपने साथ ही थी…..
कभी नहीं टोका था उसने हमें
क्योंकि हमने चोरी नहीं की थी
यह हमारा प्राबल्य ही तो था
पावन और निस्वार्थ प्रेम का ।
तुमने ही तो कहा था जन्मों तक साथ निभाने को
हर एक मुश्किल से खेल जाने को
अब क्या हुआ तुम्हें….?
कितने नगमें गुनगुनाते थे एक साथ
वो धूप में बैठकर सूरज के सामने
तब तो नहीं डरते थे ना ।
अब अंतिम मुशीबत के सामने डर कर बैठ गए तुम
दिल की गहराइयों से चाहतें हैं एक -दूजे को
प्यार कभी डरता नहीं और प्यार करने वाले भी
प्यार बलवान है और सामर्थ्यवान भी है
इस तरह हम डरेंगे तो फिर कोई किसी को नहीं चाहेगा
आने वाली पीढियां भी प्रेम करने से डरेगी
प्यार डर नहीं ताकत है, प्यार डर नहीं शक्ति है।।
© राजदीप सिंह इन्दा