प्यार जिस्मानी
**** प्यार जिस्मानी (ग़ज़ल) ***
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प्यार हो गया जिस्मानी आजकल,
राह भटकती जवानी आजकल।
देख तो जरा बिगड़ती आबोहवा,
रूह काँपती रुहानी आजकल।
प्रेम जो नहीं टिका आधार पर,
पास रह गई निशानी आजकल।
बात पर नही यकीं बेईमान की,
सोच हो गई बर्फानी आजकल।
है मिले कदम -कदम पर है दगा,
है सनम नहीं मस्तानी आजकल।
सब बिगड़ गई नस्ल मनसीरत,
अब हवा नही सुहानी आजकल।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)