प्यार की हवा
प्यार की हवा कुछ यूँ चलने अब लगी,
प्यार के विभिन्न अर्थों का भाव बदल गई।
यथार्थ की धरा पर चलूँ तो जिंदगी बदल गई,
अब लिखना चाहूँ तो उलझती चली गई।
न मैं मीरा,न मैं राधा ,न मैं सावित्री,
न मैं हीर ,न मैं अनारकली ,न मैं शीरी।
मैं तो हूँ बस इक निरीह इन्सान,
दस बार सोचूँ करने से पूर्व हर काम।
पुराने ख्यालों में थे हम पले बढ़े,
संस्कारों के दिल पर पहरे लगे ।
मुहोब्बत क्या है यह तो न जाना,
माँ पापा ने चुना वो परमेश्वर माना।
समर्पण जीवन का ध्येय बनाया,
सच्ची तपस्या कर सब निभाया।
जीवन का हर रिश्ता दिल से बनाया ,
जन्मों का मानो रिश्ता जुड़ पाया।
प्रेम के किस्सों को धत्त कह उड़ाते थे ,
आज एक दिन का बिछोह न सह पाते।
‘ऐसा भी कहीं होता है’, ये कहते थे हम,
‘ऐसा भी होता है’ ये आज कहते हैं हम।
हो सकता है हम में रवानगी न हो ,
हो सकता है हम में दीवानगी न हो ।
एक दूजे को समर्पित हैं हम,
इक दूजे का गुमान हैं हम।
सुनते हैं इक दूजे को, अहं से परे,
जीते हैं बस इक दूजे के लिए।
खानदानी मर्यादाओं से निर्वाह करते,
हर रिश्ता प्रेम से ही सिंचित करते।
हर दिल के रिश्ते का अमर प्यार
जीवन तपस्या का है यही सार।
यथार्थ की इसी धरा पर यूँ ही रहें,
दिल के हर रिश्ते सदा ही अमर रहे ।
नीरजा शर्मा