प्यार की चिट्ठी
जवानी में लिखी मैंने भी मित्रों प्यार की चिट्ठी
मुसीबत ताक में बैठी बनी वह मार की चिट्ठी
लिखे सपने हजारों थे, चुराकर नीद नैनों से
नहीं भरता था मन मेरा ,किए बिन दीद नैनोंं से
शरद की चाँदनी में चाँदनी प्रिय को लिखा मैंने
मधुर मनमोहिनी मृदुभाषिणी प्रिय को लिखा मैंने
बड़ी हिम्मत दिखाकर थी लिखी इजहार की चिट्ठी
जवानी में लिखी मैंने भी मित्रों……….।
लिफाफे में गुलाबी गुल दिली सौगात दी दिलवर
दिखे जज्बात भावोंं के , बने मुक्तामणी अक्षर
कसर कोई कहाँ छोड़ी मुहब्बत को जताने में
हृदय को खोल कर रक्खा हकीकत को दिखाने में
लगी पर हाथ दद्दू के मेरे मनुहार की चिठ्ठी
जवानी में लिखी मैंने भी मित्रों……….।
हुई पेशी थी फिर मेरी भरे परिवार के आगे
न टूटी आस कब छोड़ी सुनो तकरार के आगे
कभी बाबा कभी भैया , कभी चाची कभी मैया ।
सभी के हाँथ गालो पर, करें थे नृत्य ता-थैया
हुए थे गाल काले प्रिय पड़ी लाचार की चिठ्ठी
जवानी में लिखी मैंने भी मित्रों……….।
गिरे टूटे हुए सपने जमीं पर झर झराझर झर
उतर पारा गया सारा चढ़ा जो भूत सा ऊपर
कसम खायी तभी मैंने नहीं अब प्यार करना है
मुहब्बत आग का दरिया नहीं ये पार करना है
जली अग्नि में सीता सी ,लता लाचार की चिठ्ठी
जवानी में लिखी मैंने भी मित्रों……….।
पुष्प लता शर्मा