प्यार की कस्ती पे
प्यार की कश्ती पे होकर सवार साथ चलने लगे,
पथरीली राहों पे भी तुम संग चलने लगे,
कभी सुख तो कभी दुःख का सैलाब आया,
हाथ तेरा हाथों में लेकर बेफ़िकर होकर चलने लगे।
कुछ सपनों को भूल नये सपने सजाने लगे,
प्यार से अपने प्यार का आशियाँ बनाने लगे,
नादानियों से मेरी कई बार ज़िंदगी में तूफ़ाँ आया,
सच्चे प्यार के विश्वास से हम तुम बस चलने लगे।
हम तुम दो जिस्म एक जान बनकर चलने लगे,
नये सपनों को पूरा करने फलक पे उड़ने लगे,
राह में कई बार सपनों के टूटने पर दिल भर आया,
पर उम्मीद और विश्वास से हम दोनों फिर से चलने लगे।
सावन में भीगते हुए एक दूसरे में खोने लगे,
प्यार का ये जादू खुद पर ही आज़माने लगे,
अहम का ये कैसा तूफ़ाँ जीवन में आया,
पर समझदारी और प्यार से फिर साथ चलने लगे।
दौलत और शोहरत को पाने साथ साथ चलने लगे,
कश्मकश भरी उलझनों को बार बार सुलझाने लगे,
मेरी आँखों में जब तेरा ही अक्स मुझे नज़र आया,
तुझमें समाकर हम बनकर साथ साथ चलने लगे।
शिवकुमार बर्मन ✍️