प्यार का वो हुआ नशा मुझको
प्यार का वो हुआ नशा मुझको
पूछते लोग क्या हुआ मुझको
जाम नज़रों से पी लिया मैंने
फिर रहा कब मिरा पता मुझको
छिन गया चैन औ’र सुकून मिरा
मिल गया प्यार का मज़ा मुझको
फिर सहारे मैं उसके जी लूंगा
दर्द दोगे अगर नया मुझको
ओढकर इसको अब मैं हंसता हूँ
मिल गई ग़म की इक रिदा मुझको
पारसा ख़ुद को वो बताता है
बेवफ़ा ही सदा कहा मुझको
वक़्त ज़ंजीर से कभी अपनी
क्या करेगा कभी रिहा मुझको
एक सिहरन सी तन में फैल गई
उसने ‘आनन्द’ जब छुआ मुझको
– डॉ आनन्द किशोर