प्यार का दफ़्तर खुला
दिल में तेरे प्यार का दफ़्तर खुला
क्या निहायत ख़ूबसूरत दर खुला
वो परिन्दा क़ैद में तड़पा बहुत
जिसके ऊपर था कभी अम्बर खुला
ख़्वाब आँखों से चुरा वो ले गए
राज़े-उल्फ़त तब कहीं हम पर खुला
जी न पाए ज़िन्दगी अपनी तरह
मर गए तो मयकदे का दर खुला
शेर कहने का सलीक़ा पा गए
‘मीर’ का दीवान जब हम पर खुला
वो ‘असद मिर्ज़ा’ मुझे सोने न दे
ख़्वाब में दीवान था अक्सर खुला