प्यार और इज्ज़त के मायने
डॉ अरूण कुमार शास्त्री *एक अबोध बालक *अरुण अतृप्त
उम्र के हिसाब से हम सबको आज नहीं तो कल ढल ही जाना है ।।
ख़ासियत तो होगी तब जब कोई शख्स रूहानियत का दीवाना है ।।
मैं नही कहता कि हर घड़ी ख़ुदा की खुदाई का गाना ही गाना है ।।
मन ही मन जो रमता रहे उसका नाम वही तो असली परवाना है ।।
मुझमें तुझमें उसमें कोई फर्क ख़ासकर के ख़ुदा ने तो किये नहीं मुसलसल ।।
ये होगी हमारी ही नादानी जो हमने किसी को हिंदु किसी को मुसलमा माना है ।।
कहने को सभी का रक्त लाल हुआ करता है फिर फ़र्क किस बात का मुझको यही समझाना है ।।
आशिकी तो सभी करते हैं जिंदगी गुजारने के लिए हर कोई लैला बने मजनू बने ये बात रूहाना है ।।
मैं प्यार किया करता हूँ दिल से हर शख्स को ये ऐलान भी करता हूँ ।।
उसकी अहमियत उस व्यक्ति को समझ आये मुझे बस यही अपनाना है ।।
आइये इंसान को इंसान समझ कर इज्ज़त करना सीख लें हम सभी ।।
हर किसी को प्यार और इज्ज़त का भेद भी अब हमें समझा के जाना है ।।