प्यार आँखों में यूँ समाया है
प्यार आँखों में यूँ समाया है
बेख़ुदी है नशा सा छाया है
हर क़दम सोचकर उठाया है
फिर भी गर्दिश का हम पे साया है
हर कोई दो क़दम का है साथी
साथ किसने यहाँ निभाया है
आइना सिर्फ़ सच ही दिखलाए
सबने मतलब अलग लगाया है
लोग सीखा किये किताबों से
हादसों ने हमें सिखाया है
इम्तिहां वक़्त ले रहा मेरा
हौसला ख़ुद का आज़माया है
ये खिलाड़ी भी है मदारी भी
वक़्त ने सबको ही नचाया है
दोस्ती का सही जो है मतलब
दुश्मनों ने हमें बताया है
इतना आसां नहीं सफ़र कोई
हर क़दम मुश्क़िलों का साया है
हारकर जीत उसने है पाई
आज ‘आनन्द’ मुस्कुराया है
शब्दार्थ:- गर्दिश = सकंट
– डॉ आनन्द किशोर