“प्यारे मोहन”
“प्यारे मोहन”
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‘प्यारे मोहन’ तूने ये क्या कर डाला,
क्यों तुमने, तभी ऐसी बीन बजाई;
‘धरा’ आधा ले गया , जिन्न हरजाई;
फिर कोई, ऐसा चक्र चलाया होता;
अखंड भारत को तो, बचाया होता।
सब तो आखिर, जब तेरे थे अपने,
सबके दिल में ही था , प्यारे सपने;
फिर अचानक, नफरत कैसे आया;
किसने तुझको , जाल में फसाया;
ये अखंड भारत,क्यों न बच पाया।
जिस जन ने , तुझको बापू बनाया;
उसकी धरती आखिर क्यों गंवाया,
लगता कुछ चाल तू समझ न पाया,
क्यों न, तभी कोई भी बुद्धि लगाई;
क्या काम न आई , कानूनी पढ़ाई।
आजादी तो, हमसब लेके ही रहते;
बहुत से भरे थे, आजादी वीर यहां;
तब सबको तुने, गलत ही ठहराया;
अहिंसा के , हथकंडे को अपनाया;
बांटने से पहले , धरते तू धीर यहां।
तभी इस हिंदुस्तान के, बंटवारे की;
किसी परिवार ने अगर, चाल चली;
उसकी ही आखिर क्यों, दाल गली;
तुम तो थे, देश के ही असली गांधी;
क्यों ना तब तुम, ला दिए थे आंधी।
मिला क्या , भारत को सत्याग्रह से;
जब बटी धरा , जुल्मी के आग्रह से;
अपनी तो आधी गई, तेरे दुराग्रह से;
आज स्थिति है फिर , वहीं की वहीं;
मगर अब बटेंगी नहीं, ये जमीं कहीं।
बापू, फिर भी तुझे शत-शत नमन है;
भले ही, आज अपना आधा चमन है;
तूने आखिर गोरों से तो,मुक्ति दिलाई;
देश खातिर, खुद सीने में गोली खाई;
सत्य और अहिंसा की तो पाठ पढ़ाई।
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स्वरचित सह मौलिक:
……✍️पंकज ‘कर्ण’
…………..कटिहार।।
तिथि: ०२/१०/२०२१