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1 May 2018 · 1 min read

श्रमिक- – –

हम
जब भी उसका चित्र
अपने मानस पटल पर उतारते हैं
तो
अलंकार होते हैं
ईंट ,रेत, हथौड़ा, मिट्टी में रंगा ,झुर्रियाँ आँखों में
फटे-चिथे वस्त्र:जो वास्तव में तन को ढकने मात्र के लिए हैं
और ढेर सारा सम्मान पाने के लिए
कॅनवास पर उसका आधा-अधूरा जीवन,
कविता में मुखौटे वाली संवेदना
और तालियों से अपने अहं को हजार गुना कर लेना!
कभी
उसके जीवन में रंग और अलंकार उलट दिए जाएं
उसकी पीड़ा और साँसर से झाँकता आनंद
दोनों में हम सचमुच के सहभागी हो जाएँ!

मुकेश कुमार बड़गैयाँ

Language: Hindi
1 Comment · 469 Views
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