प्यार,इश्क ही इँसा की रौनक है
उस दिवार के बीच इक मोहब्बत कायम है,रहने दो
चाँद सितारों की रोशनी से रात में चमक है,रहने दो
इस रोशन आफ़ताब पे कोई कैसे हक़ जमा सकता
इन्ही रोशनी से जमी पर धुप की दमक है,रहने दो
इन आँखों से अब ये दर्द के मंझर बर्दाश्त नहीं होते
लफ्ज़ रूह के भीतर दबे होने की कसक है रहने दो
जब खुद से खुद हारोगे तो कुछ तो नया सिख लोगे
दुष्मन को हराने में आपकी ये जो धमक है रहने दो
हर एक चीज़ आपस में टकराकर फ़ना हो जाती है
दुनिया में प्यार,इश्क यही इँसा की रौनक है रहने दो
©’अशांत’ शेखर