पौष्टिक आहार तो हो जीवन में…
पौष्टिक आहार तो हो जीवन में…
पर सात्विक है जरूरी।।
करूण वेदना से व्यथित हैं,
मानव हृदय और धरा अब।
दे रही बस इक इशारा,
सोचना है जरूरी ।
पौष्टिक आहार तो हो जीवन में…
पर सात्विक है जरूरी,
जब मनुज ने मनुजता तज,
पशु – पक्षी पर है वार किया।
मांस लहू से जीभ सना फिर,
प्रकृति को शर्मसार किया।
कीट -पतंग से चौपाए तक,
सब पर इसने वार किया ।
शावक हो या मूक पशु खग,
भयाकुल स्वर में गाता है।
छूकर देखो, हाथ फेरकर,
कितना प्रेम उमड़ता है।
दहल उठी है यह धरती,
व्याकुल वेदनाओं के तरंगों से।
मन कितना बेचैन हुआ है,
ओढ़कर निराशामयी चादर से।
प्राणवायु की ललक में ,
दर-दर भटकता मानव।
और प्रकृति ने दिखा दिया,
फिर से एक बार तांडव ।
तदापि मनुज सुधरने को तैयार नहीं,
जागो मनुज अब भी वक़्त है,
पहचानों बेजुबानों की खामोशी।
महामारी तो बस है एक चेतावनी!!
पौष्टिक आहार तो हो जीवन में…
पर सात्विक है जरूरी।।
मौलिक एवं स्वरचित
© मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )