“पोरस”
“पोरस”रो नयी पीढ़ी शायद नहीं जानती,जिसने सिकंदर जैसे योद्धा का न केवल सामना किया अपितु हार के बावजूद उसकी आँखो में आँखे डाल कर उससे बराबरी का हक़ लेने में सफल रहा;एसे वीर को नमन करती कविता आपको भी प्रेरित करती है बराबरी का अधिकार पाने को:-
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“पोरस”
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जानता हूँ ,
सिकंदर हो तुम;
तुम अपने जहाँ के।
पर हूँ ,
पोरस मैं भी;
जीवन में अपने;
छोड़ूंगा नहीं,
युद्ध का मैदान,
अंत तक,
जब तक,
खड़ा न हो जाऊँ ;
सामने तुम्हारे,
बराबर बराबर
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राजेश”ललित”शर्मा