पैग़ाम
शब्द डगर का पथिक
जब भी जुड़ता है
एक और शब्दों की नई राह से
जिसमे नये चेहरे होते है
क़लम के नए तेवर भी होते है
सृजन के नए आयाम होते है
कुछ कहने के अपने अंदाज होते है
तब इस नयी महफ़िल में
कदम धरने से पहले
वो सबको सलाम करता है
और मोहब्बत का पैगाम देता है
आज मैं अपना ये फर्ज अता कर रहा हूँ
शायद क़लम से शब्दों की वफ़ा कर रहा हूँ।
आभार स्नेहिल दोस्तों।
मुलाक़ात होती रहेगी——–
संजय सनम